JUDICIARY
संवैधानिक सिद्धांत समाज के अनुरूप क्यों विकसित होने चाहिये ?
संविधान एक जीवंत दस्तावेज है:
• मुख्य न्यायाधीश ने 'जीवंत संविधान' की अवधारणा पर प्रकाश डाला, जिसका तात्पर्य है कि इसकी व्याख्या बदलते सामाजिक मानदंडों के अनुरुप होनी चाहिये।
• इससे संवैधानिक न्यायालयों को समय के साथ उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों के लिये न केवल समाधान ढूँढने में सहायता मिलती है बल्कि इससे संविधान की प्रासंगिकता बनी रहती है।
विभिन्न सामाजिक संदर्भ:
• मुख्य न्यायाधीश के अनुसार कोई भी दो पीढ़ियों के लिये संविधान का एक ही सामाजिक, विधिक या आर्थिक संदर्भ नहीं होता है।
• जैसे-जैसे समाज विकसित होता है, कुछ नई चुनौतियाँ सामने आती हैं जिनके लिये समकालीन आवश्यकताओं को पूरा करने के क्रम में संविधान की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता होती है, जैसे व्यभिचार को वैध बनाना।
मौलिकतावाद के साथ तुलनाः
• CJI चंद्रचूड़ ने मौलिकतावाद के उदाहरण के रूप में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2022 के डॉब्स बनाम जैक्सन महिला स्वास्थ्य संगठन के फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें अमेरिकी संविधान में स्पष्ट रूप से गर्भपात का उल्लेख न होने के कारण गर्भपात के अधिकार को अस्वीकार कर दिया गया था।
शासन में संवैधानिक लचीलेपन/अनुकूलन की क्या भूमिका है?
प्रगतिशील सुधार हेतु समर्थनः संविधान की अनुकूलनशीलता से वर्तमान सामाजिक माँगों के अनुरूप सुधारों (तकनीकी प्रगति से लेकर डेटा संरक्षण कानूनों जैसे मानव अधिकारों तक) को बढ़ावा मिलता है।
• विधिक क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा मिलनाः एक जीवंत संविधान से नवीन विधिक व्याख्याओं का मार्ग प्रशस्त होने के साथ डिजिटल युग में निजता संबंधी चिंताओं जैसी उभरती चुनौतियों का समाधान हो सकता है।
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षाः संविधान की गतिशील व्याख्या से रूढ़िवादी व्याख्याओं (जिनसे स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है) को चुनौती मिलती है।
• अनुकूलनशीलताः अनुकूल संवैधानिक सिद्धांत से यह सुनिश्चित होता है कि विभिन्न संस्थाएँ तेज़ी से विकसित हो रहे विश्व में (विशेष रूप से ज्ञान अर्थव्यवस्था में) प्रासंगिक बनी रहें।
• नई वास्तविकताओं का समावेशनः जीवंत संवैधानिक सिद्धांत से न्यायालयों को अपनी व्याख्याओं में नए सामाजिक, आर्थिक तथा विधिक संदर्भों को शामिल करने की प्रेरणा मिलती है।
भारतीय संविधान की प्रकृति क्या है?
हाइब्रिड संरचनाः भारतीय संविधान नम्य तथा अनम्य दोनों ही प्रकृति का है। इससे संविधान के मूल ढाँचे में स्थिरता बनाए रखते हुए अनुकूलनशीलता सुनिश्चित होती है।
• आधारभूत मूल्यों की सुरक्षाः इसकी अनम्यता की प्रकृति से मूल अधिकारों एवं बुनियादी ढाँचे में मनमाने परिवर्तनों के विरुद्ध सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
• संघवाद का संरक्षणः यद्यपि संघीय ढाँचे को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है फिर भी समवर्ती सूची जैसी नई वास्तविकताओं के अनुकूलन के क्रम में इसमें आवश्यक परिवर्तन किये जा सकते हैं।
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