गंभीर आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान हेतु बनाए गए भारत के फास्ट-ट्रैक कोर्ट अपनी प्रभावशीलता को लेकर जाँच का सामना कर रहे हैं। हालाँकि शुरुआती रुझान के बावजूद कार्यात्मक न्यायालयों की संख्या में कमी आई है।
नोट
फास्ट-ट्रैक कोर्ट्स की संख्या का रुझान
• वर्ष 2018 और वर्ष 2020 के बीच भारत में फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई जो 699 से बढ़कर 907 हो गई, जिसका मुख्य कारण हाई-प्रोफाइल मामलों में विलंब को लेकर जनता में व्याप्त आक्रोश था।
• हालाँकि वर्ष 2020 के बाद से यह प्रगति धीमी हो गई है, वर्ष 2023 में कार्यात्मक न्यायालयों की संख्या घटकर 832 हो गई है, जो वित्तीय और प्रशासनिक बाधाओं के कारण इन न्यायालयों को बनाए रखने में राज्यों के समक्ष विभिन्न चुनौतियों को दर्शाती है
FTSC क्या हैं?
परिचय
• FTSC भारत में स्थापित न्यायिक निकाय हैं, जो यौन अपराधों से संबंधित मामलों, विशेष रूप से बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) से संबंधित मामलों की सुनवाई की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिये स्थापित किये गए हैं।
स्थापना
केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम पारित किया, जिसमें बलात्कार के अपराधियों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड का प्रावधान किया गया। इसके पश्चात् ऐसे मामलों के त्वरित निर्णय की सुविधा के लिये FTSC की स्थापना की गई।
भारत के उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार, केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में अगस्त 2019 में FTSC की स्थापना की पहल को औपचारिक रूप दिया गया था।
पोक्सो अधिनियम क्या है?
परिचय
• इस कानून का उद्देश्य बच्चों के यौन शोषण और यौन उत्पीड़न के अपराधों को संबोधित करना है। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है।
• इसे वर्ष 1992 में बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के भारत के अनुसमर्थन के परिणामस्वरूप अधिनियमित किया गया था।
FTSC के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
बुनियादी ढाँचे का अभावः फास्ट ट्रैक कोर्ट्स प्रायः अपर्याप्त सुविधाओं के साथ कार्य करती हैं, जिसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी जैसे आवश्यक संसाधनों और मुकदमों के भार को कुशलतापूर्वक निपटाने के लिये पर्याप्त स्थान का अभाव होता है।
न्यायिक अधिभारः अपने उद्देश्य के बावजूद, फास्ट ट्रैक कोर्ट्स को प्रायः मामलों की अधिकता का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप विलंब देखने को मिलता है, जो त्वरित न्याय के उनके मूलभूत उद्देश्य के विपरीत है।
• असंगत कार्यान्वयनः फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की स्थापना और कार्यप्रणाली विभिन्न राज्यों में भिन्न हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप न्याय तक असमान पहुँच और विधिक मानकों का असंगत अनुप्रयोग होता है।
• न्यायिक कार्मिकों की गुणवत्ताः न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों की भर्ती और प्रशिक्षण सदैव फास्ट ट्रैक कोर्ट्स की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप
नहीं हो सकता है, जिससे न्यायिक निर्णय लेने की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
• सीमित सार्वजनिक जागरूकताः फास्ट ट्रैक कोर्टस के कार्यों और प्रक्रियाओं के संबंध में सामान्य जन में जागरूकता का अभाव है, जो उनकी प्रभावशीलता और पहुँच में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
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