विधि का शासन RULE OF LAW

 

विधि का शासन (Rule of Law) - विस्तृत व्याख्या

विधि का शासन (Rule of Law) की विस्तृत व्याख्या

1. विधि का शासन क्या है?

विधि का शासन का अर्थ है कि किसी भी देश में कानून सर्वोच्च होता है, और सभी व्यक्ति या संस्थाएँ उसी कानून के अधीन होते हैं। इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह सरकारी अधिकारी हो या आम नागरिक, कानून से ऊपर नहीं होता। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समाज में सभी के साथ समानता और न्याय हो। यह सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है और कानून के दायरे में सभी की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करता है।

2. विधि के शासन के सिद्धांत

विधि के शासन के तीन प्रमुख सिद्धांत हैं: पहला, कानून की सर्वोच्चता, जिसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति या संस्था की शक्ति कानून से अधिक नहीं हो सकती। दूसरा, कानून के समक्ष समानता, जो यह सुनिश्चित करता है कि सभी लोग, चाहे वे किसी भी वर्ग या पद के हों, कानून के सामने समान हों। तीसरा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा, जिसका अर्थ है कि कानून प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करता है, जिससे समाज में न्याय और शांति बनी रहती है।

3. विधि और मनमानी शक्ति

विधि का शासन और मनमानी शक्ति एक-दूसरे के विपरीत होते हैं। विधि का शासन यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिक कानून के अनुसार कार्य करें और किसी भी प्रकार की मनमानी से बचा जाए। इसके विपरीत, मनमानी शक्ति में कोई व्यक्ति या संस्था अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय लेती है, जो अक्सर कानून का पालन नहीं करती। यह समाज में असमानता और अन्याय को जन्म देता है। विधि का शासन, इसके उलट, न्यायिक प्रक्रियाओं और नियमों के अनुसार सत्ता का उपयोग सुनिश्चित करता है।

4. संविधान में विधि के शासन का महत्व

भारतीय संविधान विधि के शासन के सिद्धांत को विशेष महत्व देता है। संविधान का अनुच्छेद 14 स्पष्ट रूप से "कानून के समक्ष समानता" का प्रावधान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि देश में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। यह प्रावधान विधि के शासन को संविधान की नींव बनाता है। इसके माध्यम से सत्ता का उपयोग केवल कानून के अनुसार किया जाता है, जिससे न्यायपालिका और अन्य संस्थाएँ यह सुनिश्चित करती हैं कि नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न हो और कोई भी कानून से ऊपर न हो।

5. ए. वी. डाइस्सी का सिद्धांत

विधि के शासन का सिद्धांत सबसे पहले इंग्लैंड के विधिवेत्ता ए. वी. डाइस्सी ने 19वीं शताब्दी में प्रस्तुत किया। डाइस्सी के अनुसार, कानून की सर्वोच्चता ही समाज में न्याय और समानता की गारंटी देती है। उन्होंने यह तर्क दिया कि किसी भी व्यक्ति या सरकार को मनमानी शक्ति नहीं होनी चाहिए और सभी को कानून के अधीन रहकर कार्य करना चाहिए। डाइस्सी का यह सिद्धांत विधि के शासन की बुनियादी परिभाषा बन गया है, जिसे आज भी दुनिया भर में कानूनी व्यवस्थाओं में अपनाया जाता है।

6. डाइस्सी के अनुसार विधि के सिद्धांत

डाइस्सी ने विधि के शासन के तीन प्रमुख सिद्धांत दिए: पहला, कानून की सर्वोच्चता, जिसका मतलब है कि कानून का उल्लंघन किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। दूसरा, कानून के समक्ष समानता, यानी सभी व्यक्ति कानून के सामने बराबर होंगे। तीसरा, व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा, यानी कानून प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की सुरक्षा करता है और किसी भी प्रकार की अवैध कार्रवाई को रोकता है। इन सिद्धांतों से समाज में न्याय और समानता सुनिश्चित की जाती है।

7. विधि के शासन का उद्देश्य

विधि के शासन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समाज में सभी नागरिक कानून का पालन करें और किसी भी प्रकार की मनमानी या अन्याय को रोका जाए। यह सिद्धांत समाज में समानता, स्वतंत्रता और न्याय को बनाए रखने का काम करता है। विधि का शासन यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकार या अन्य संस्थाओं द्वारा नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन न हो, और सभी व्यक्ति न्यायिक प्रक्रियाओं के अनुसार अपने अधिकारों की रक्षा कर सकें।

8. विभिन्न देशों में विधि का शासन

विधि का शासन एक वैश्विक सिद्धांत है, लेकिन इसका कार्यान्वयन अलग-अलग देशों में भिन्न हो सकता है। कुछ देशों में कानून की सर्वोच्चता स्पष्ट रूप से लागू होती है, जबकि अन्य देशों में इसे प्रभावी ढंग से लागू करने में कठिनाइयाँ हो सकती हैं। विभिन्न कानूनी और सांस्कृतिक व्यवस्थाएँ विधि के शासन के सिद्धांतों को अपने अनुसार ढाल सकती हैं। परंतु इसका मूल सिद्धांत हर जगह एक ही है—कानून का पालन और सभी नागरिकों के लिए न्याय सुनिश्चित करना।

9. भारत में विधि का शासन

भारत में विधि का शासन संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है। देश के प्रत्येक नागरिक और संस्था को कानून का पालन करना अनिवार्य है। हालांकि, कभी-कभी इसका उल्लंघन भी देखा जाता है, लेकिन न्यायपालिका और अन्य संवैधानिक संस्थाएँ इसे सुधारने का प्रयास करती हैं। विधि का शासन भारत में नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा, न्याय और समानता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे लोकतंत्र मजबूत होता है।

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