संविधान और राज्य-व्यवस्था: समझें इन दोनों के बीच का बुनियादी अंतर


हेलो हेलो फ्रेंड्स! The Fresh Law में एक बार फिर आपका स्वागत है।
आज की पोस्ट में हम बात करेंगे संविधान और राज्य-व्यवस्था की। यह दोनों शब्द सिविल सर्विस या किसी भी लॉ परीक्षा की तैयारी करने वालों के सिलेबस में आते हैं, लेकिन अक्सर इन्हें एक ही समझ लिया जाता है। जबकि, इन दोनों में गहरा अंतर है। आइए, इस क्लास के माध्यम से इसे विस्तार से समझते हैं।

संविधान और राज्य-व्यवस्था एक नहीं हैं
अगर आप यह मानकर चल रहे हैं कि संविधान और राज्य व्यवस्था एक ही चीज है, तो आप एक बड़ी गलती कर रहे हैं। यह दोनों भले ही एक-दूसरे से संबंधित हों, लेकिन दोनों अलग-अलग अवधारणाएं हैं।

संविधान क्या है?
1. संविधान का सरल अर्थ
मान लीजिए कि जैसे घर में कुछ परंपराएं, नियम और व्यवहार होते हैं जिनके आधार पर घर चलता है, वैसे ही किसी देश को चलाने के लिए भी एक संकलन की आवश्यकता होती है। उसी संकलन को संविधान कहा जाता है।
यह संकलन नियमों, कानूनों, परंपराओं, आदर्शों और सिद्धांतों का होता है, जो शासन के लिए आवश्यक होते हैं। संविधान लिखित भी हो सकता है और अलिखित भी।
2. संविधान की विशेषताएं
लिखित संविधान: भारत का संविधान इसी श्रेणी में आता है।
अलिखित संविधान: जैसे ब्रिटेन, जहाँ परंपराओं का बड़ा योगदान है।
यह मायने नहीं रखता कि संविधान लिखित है या अलिखित, लेकिन हाँ, सभी संविधानों में कुछ लिखित अंश जरूर पाए जाते हैं।

3. परंपराओं की भूमिका
संविधान सिर्फ लिखित नियमों का संग्रह नहीं है, इसमें परंपराएं भी भूमिका निभाती हैं। जैसे लोकसभा अध्यक्ष की नियुक्ति या प्रधानमंत्री की नियुक्ति जैसे कई कार्य संविधान में स्पष्ट नहीं लिखे होते, फिर भी परंपरा से वे किए जाते हैं।

शासन और संविधान का संबंध
1. शासन क्या है?
शासन का अर्थ है – एक देश को चलाना। यानी सरकार या संस्थाएं जो जनता के लिए कार्य करती हैं, नियम बनाती हैं और उन्हें लागू करती हैं। यह जनता के सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करता है, जैसे स्कूल, ऑफिस, अस्पताल आदि की व्यवस्थाएं।

अब बात करें – राज्य-व्यवस्था की

1. राज्य व्यवस्था क्या है?
संविधान में लिखी गई बातों को व्यवहार में लागू करने के लिए जो व्यवस्थाएं, संस्थाएं, प्रक्रियाएं और व्यवस्थागत क्रियाएं की जाती हैं, उन्हें राज्य-व्यवस्था कहा जाता है।
सरल शब्दों में – संविधान का व्यावहारिक प्रयोग ही राजव्यवस्था है।
उदाहरण से समझें: अनुच्छेद 17
संविधान का अनुच्छेद 17 कहता है कि –
> “अस्पृश्यता का अंत किया जाएगा और यह कानूनन दंडनीय अपराध होगी।”

यह संविधान में लिखा है, यानी यह संविधान का भाग है।
लेकिन क्या सिर्फ इतना लिख देने से अस्पृश्यता खत्म हो जाएगी?

नहीं। इसे व्यवहार में लाने के लिए:

1. यह तय करना होगा कि अस्पृश्यता क्या है?
2. कौन सी विधि (कानून) इसके लिए लागू होगी?
3. दंड क्या होगा?

कैसे लागू किया गया अनुच्छेद 17?
इसके लिए संसद ने 1955 में एक अधिनियम बनाया –
👉 अस्पृश्यता निवारण अधिनियम, 1955
जिसे बाद में संशोधित करके नाम दिया गया –
👉 नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1976

अब यह जो कानून बना, वह संविधान नहीं है, यह राज्य-व्यवस्था का हिस्सा है।

राज्य-व्यवस्था की तीन प्रमुख स्रोत

1. संसद द्वारा पारित अधिनियम (Laws by Parliament)
संसद जो भी अधिनियम बनाती है, खासकर जो संविधान को लागू करने से संबंधित हैं, वे सभी राज्य-व्यवस्था में आते हैं।
जैसे – शिक्षा का अधिकार अधिनियम, आरक्षण कानून, नागरिकता संशोधन अधिनियम आदि।

2. न्यायपालिका के निर्णय (Judicial Pronouncements)
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के संवैधानिक व्याख्या वाले निर्णय भी राजव्यवस्था का हिस्सा होते हैं।
जैसे –

इंटरनेट एक्सेस को मौलिक अधिकार बताने वाला निर्णय,
केशवानंद भारती केस,
मिनर्वा मिल्स केस,

3. कार्यपालिका की नीतियाँ और अधिसूचनाएँ (Executive Policies)
संविधान के आधार पर कार्यपालिका द्वारा बनाई गई नीतियाँ, आदेश, अधिसूचनाएँ भी राज्य-व्यवस्था का भाग होती हैं।

संविधान और राज्य-व्यवस्था: संक्षेप में अंतर

संविधान (Constitution) राज्य-व्यवस्था (Polity)
सिद्धांत, आदर्श और मूल ढांचा व्यावहारिक क्रियान्वयन और प्रक्रिया
लिखा हुआ/अलिखित संकलन संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका की क्रियाएं
स्थिर और सैद्धांतिक गतिशील और परिवर्तनशील

अंतिम बात: क्या पढ़ना है?
संविधान पढ़ने के लिए आपको संविधान की किताब (Bare Act) मिल जाएगी, लेकिन राज्य-व्यवस्था के लिए:
संसद के नए कानून पढ़ने होंगे
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसले पढ़ने होंगे
सरकार की प्रमुख नीतियाँ और योजनाएँ जाननी होंगी
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अगर यह लेख आपको समझ में आई हो, तो कमेंट करके जरूर बताइए।
हम आगे चलकर संविधान के प्रकार, मूल तत्व, संसोधन प्रक्रिया, न्यायपालिका आदि पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।

ध्यान रखें: संविधान और राज्य-व्यवस्था को अलग-अलग समझना सिविल सेवा परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत आवश्यक है।


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