आपराधिक विधि की वैधानिकता (Legality of Criminal Law)

 

आपराधिक विधि की वैधानिकता का अर्थ यह है कि कोई भी आपराधिक कानून वैध (legally valid) तभी माना जाएगा जब वह कुछ बुनियादी सिद्धांतों और संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हो। भारत में, आपराधिक विधि (Criminal Law) की वैधानिकता निम्नलिखित आधारों पर निर्भर करती है:



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1. संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूपता


संविधान का अनुच्छेद 13: कोई भी कानून जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।


संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार): आपराधिक कानून बिना किसी भेदभाव के समान रूप से सभी पर लागू होना चाहिए।


संविधान का अनुच्छेद 20:


Ex Post Facto Law: कोई भी व्यक्ति उस कार्य के लिए दंडित नहीं किया जा सकता जो अपराध किए जाने के समय अपराध नहीं था।


Double Jeopardy: किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित नहीं किया जा सकता।


Self Incrimination: किसी आरोपी को अपने ही खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।



संविधान का अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार): कोई भी आपराधिक कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता को उचित प्रक्रिया (due process of law) के बिना समाप्त नहीं कर सकता।




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2. विधायी अधिकार (Legislative Authority)


आपराधिक कानून संसद या विधानसभाओं द्वारा बनाए जाते हैं और इनका पालन संविधान द्वारा निर्धारित विधायी शक्तियों के अनुसार किया जाता है।


संविधान की सातवीं अनुसूची (Seventh Schedule) में आपराधिक विधि से संबंधित विषय केंद्र सूची (Union List) और समवर्ती सूची (Concurrent List) में आते हैं।


केंद्र सरकार: भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) आदि बनाती है।


राज्य सरकार: कुछ विशेष मामलों में अपने क्षेत्र के लिए आपराधिक कानून बना सकती है।





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3. विधि का सार्वभौमिकता सिद्धांत (Principle of Universality of Law)


आपराधिक कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति, लिंग या स्थान से हों।


न्यायपालिका के फैसले भी आपराधिक विधि की वैधानिकता को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।




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4. विधायिका और न्यायपालिका का संतुलन


संसद कानून बनाती है, लेकिन न्यायपालिका यह तय करती है कि वह कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।


मानवाधिकारों का संरक्षण: अगर कोई आपराधिक कानून मौलिक अधिकारों का हनन करता है, तो उच्च न्यायालय (HC) और सर्वोच्च न्यायालय (SC) उसे असंवैधानिक घोषित कर सकते हैं।




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निष्कर्ष


आपराधिक विधि की वैधानिकता इस बात पर निर्भर करती है कि वह संविधान के मौलिक अधिकारों, विधायी शक्तियों, न्यायिक व्याख्याओं और विधि के सार्वभौमिक सिद्धांतों के अनुरूप है या नहीं। यदि कोई आपराधिक कानून इन शर्तों

 को पूरा नहीं करता, तो उसे असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है।


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