युद्ध: परिभाषा, प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय विधि में मान्यता

 

युद्ध की परिभाषा, प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय विधि में स्थिति

युद्ध की परिभाषा, प्रभाव और अन्तर्राष्ट्रीय विधि में स्थिति

✦ युद्ध की परिभाषा (Definition of War)

अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का समाधान दो प्रकार से किया जाता है— (1) शांतिपूर्ण तरीकों से और (2) अवपीड़क (जबरदस्ती) तरीकों से। जब विवाद का शांतिपूर्ण समाधान संभव न हो, तब राज्यों के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है।

प्रमुख विद्वानों की परिभाषाएँ:

  • स्टॉक: “युद्ध सामान्यतः दो या अधिक राज्यों के सशस्त्र बलों के बीच होता है, जिसमें प्रत्येक पक्ष दूसरे को हराकर अपनी शर्तें मनवाने का प्रयास करता है।”
  • हाल: “जब राज्यों के बीच विवाद इस स्तर तक पहुँच जाए कि दोनों पक्ष बल प्रयोग करें और एक पक्ष की हिंसा को दूसरा शांति का उल्लंघन माने, तब युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है।”
  • ओपेनहाइम: “युद्ध एक सशस्त्र संघर्ष है जो अन्य उपायों जैसे- नाकाबंदी, व्यापार निषेध, शत्रु सम्पत्ति पर कब्जा आदि के साथ भी चल सकता है।”
नोट: वर्तमान युग में युद्ध की परंपरागत परिभाषाएं अपर्याप्त हो चुकी हैं। आज युद्ध की घोषणा किए बिना भी सैन्य संघर्ष हो जाते हैं, और नागरिक भी प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।

✦ युद्ध के प्रभाव (Effects of War)

युद्ध का प्रभाव न केवल सैन्यबलों पर बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, संविदाओं, सम्पत्ति और नागरिकों पर भी पड़ता है।

1. राजनयिक और वाणिज्य दूत संबंधों का अंत

युद्ध प्रारंभ होते ही युद्धरत देशों के बीच राजनयिक और कांसुलर सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं।

1961 वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 44 के अनुसार: ग्रहणकर्त्ता राज्य को राजनयिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभानी होती है जब तक वे राज्य में उपस्थित रहें।

2. व्यापारिक सम्बन्धों की समाप्ति

युद्ध छिड़ने पर युद्धरत देशों के बीच व्यापार एवं आवागमन स्वतः समाप्त हो जाते हैं।

ओपेनहाइम के अनुसार, यह विषय राज्य विधि का है, न कि अन्तर्राष्ट्रीय विधि का।

3. सन्धियों पर प्रभाव

सन्धियों पर युद्ध के प्रभाव को लेकर विभिन्न मत हैं:

  • स्टार्क: युद्ध छिड़ते ही सभी संधियाँ समाप्त।
  • वाल्डमैन: शांति संधियाँ स्थायी होती हैं।
  • मध्यमत: कुछ संधियाँ समाप्त होती हैं, कुछ बनी रहती हैं।

प्रमुख प्रभाव:

  • सीमा, देशीयकरण व स्थानीय मामलों की संधियाँ – बनी रहती हैं।
  • मैत्री व राजनीतिक संधियाँ – समाप्त हो जाती हैं।
  • प्रत्यपर्ण संधियाँ – स्थगित रहती हैं।

4. संविदाओं पर प्रभाव

युद्ध के दौरान होने वाली संविदाएँ, जो भविष्य में पूरी होनी थीं, अमान्य हो जाती हैं। जो संविदाएँ पहले ही पूरी हो चुकी हैं, वे सामान्यतः युद्ध से प्रभावित नहीं होतीं।

5. शत्रु देश के नागरिकों पर प्रभाव

पुराने समय में सभी शत्रु नागरिकों को युद्धबंदी बना लिया जाता था।

अब: केवल वे व्यक्ति जिनके पास रणनीतिक जानकारी हो, उन्हें बन्दी बनाया जाता है। अन्य नागरिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया जाता है।

6. शत्रु देश की सम्पत्ति पर प्रभाव

(a) सार्वजनिक शत्रु सम्पत्ति:

  • चल सम्पत्ति – जब्त की जा सकती है।
  • अचल सम्पत्ति – प्रयोग की जा सकती है, पर बेची नहीं जा सकती।

(b) निजी शत्रु सम्पत्ति:

  • केवल सैन्य आवश्यकताओं के लिए सीमित प्रयोग किया जा सकता है।
  • कब्जा करना या लूटना अन्तर्राष्ट्रीय विधि के विरुद्ध है।

उदाहरण: 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भारत ने कब्जा किया, पर निजी सम्पत्ति को नहीं बेचा।

7. योधा और अयोधा सैनिकों पर प्रभाव

वैध सैनिक: नियमित सेनाएं; मारना, घायल करना, बन्दी बनाना वैध।

अवैध सैनिक: इन्हें बन्दी बनाया जा सकता है; सामान्यतः हमला नहीं किया जा सकता।

✦ क्या अन्तर्राष्ट्रीय विधि युद्ध को मान्यता देती है?

पहले: हर राज्य को युद्ध करने का पूर्ण अधिकार था।

अब:

  • राष्ट्रसंघ की स्थापना (1919) के बाद युद्ध एक “अन्तर्राष्ट्रीय चिन्ता” का विषय बन गया।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) में युद्ध निषिद्ध है, सिवाय आत्मरक्षा या सुरक्षा परिषद की स्वीकृति के।
निष्कर्ष: आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय विधि युद्ध को मान्यता नहीं देती, बल्कि उसे रोकने और शांति बनाए रखने के लिए सामूहिक सुरक्षा की व्यवस्था करती है।

✦ निष्कर्ष

आज के समय में युद्ध केवल सैनिक संघर्ष नहीं रह गया है, बल्कि उसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय विधि, नागरिकों, सम्पत्ति, व्यापार, संविदाएँ और संधियों पर भी पड़ता है। इसलिए युद्ध के नियम और प्रभावों को समझना न केवल विधि छात्रों के लिए आवश्यक है, बल्कि वैश्विक शांति की दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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