परिचय
कांशीराम भारतीय राजनीति के उन नेताओं में से थे जिन्होंने वंचित वर्गों को राजनीतिक ताकत बनाने का काम किया। उन्होंने ‘बहुजन समाज पार्टी’ (BSP) की स्थापना कर दलित, पिछड़े, और आदिवासी समाज को संगठित किया और उन्हें सत्ता में भागीदारी दिलाने का मार्ग प्रशस्त किया। उनका जीवन संघर्ष और सामाजिक क्रांति का प्रतीक है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
कांशीराम का जन्म 15 मार्च 1934 को पंजाब के रूपनगर (रोपड़) जिले के खवासपुर गांव में हुआ था। वे एक रामदासिया सिख परिवार से थे, जो अनुसूचित जाति समुदाय से संबंध रखते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई और बाद में उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, रोपड़ से विज्ञान में स्नातक (B.Sc.) किया।
स्नातक की पढ़ाई के बाद वे पुणे स्थित रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने लगे। यहाँ उन्होंने दलितों के साथ होने वाले भेदभाव को नजदीक से देखा, जिसने उनके सामाजिक और राजनीतिक विचारों को गहराई से प्रभावित किया।
सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष
BAMCEF (1971) की स्थापना
BAMCEF (The Backward and Minority Communities Employees Federation) सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को संगठित करने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य इन वर्गों को सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए प्रेरित करना था।
DS-4 (1981) की स्थापना
‘दलित शोषित समाज संघर्ष समिति’ (DS-4) का उद्देश्य दलितों को सामाजिक अन्याय के खिलाफ खड़ा करना और उन्हें चुनावी राजनीति में भाग लेने के लिए तैयार करना था। DS-4 का नारा था – "ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़, बाकी सब हैं DS-4"।
बहुजन समाज पार्टी (1984) की स्थापना
BAMCEF और DS-4 की सफलता के बाद 1984 में कांशीराम ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ (BSP) की स्थापना की। यह पार्टी विशेष रूप से दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को राजनीतिक रूप से सशक्त करने के लिए बनाई गई थी। BSP का मुख्य नारा था – "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी"।
BSP ने 1990 के दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीति में मजबूती से पैर जमाए और 1995 में मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
कांशीराम की विचारधारा और योगदान
- दलित चेतना जागरूकता: उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाया और दलितों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया।
- राजनीतिक संगठन: उन्होंने BAMCEF, DS-4 और BSP के माध्यम से बहुजन समाज को संगठित किया।
- ब्राह्मणवादी व्यवस्था का विरोध: उन्होंने समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेदभाव के खिलाफ खुलकर संघर्ष किया।
- सामाजिक न्याय की राजनीति: उन्होंने सामाजिक न्याय को राजनीतिक एजेंडा बनाया और सत्ता में भागीदारी को सुनिश्चित किया।
निधन और विरासत
कांशीराम का स्वास्थ्य 1990 के दशक के अंत में खराब होने लगा। 9 अक्टूबर 2006 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली में उनका निधन हो गया। उनके अंतिम संस्कार को बौद्ध परंपरा के अनुसार संपन्न किया गया।
उनकी राजनीतिक उत्तराधिकारी मायावती ने BSP को आगे बढ़ाया और कई बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं।
निष्कर्ष
कांशीराम ने अपने जीवन को सामाजिक न्याय और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने बहुजन समाज को एक नई दिशा दी और भारतीय राजनीति में हाशिए पर पड़े वर्गों को सत्ता में भागीदारी दिलाने का कार्य किया। उनका जीवन संघर्ष और प्रेरणा का प्रतीक है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
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