संविधान और संविधानवाद: अंतर, महत्व और भारत में स्थिति

हेलो फ्रेंड्स, theFreshlaw में आपका स्वागत है। आज हम चर्चा करेंगे कि संविधान और संविधानवाद में क्या अंतर है। क्या दोनों एक ही चीज़ हैं? क्या संविधान के होते हुए भी संविधानवाद नहीं हो सकता? और भारत में संविधानवाद किस स्तर तक मौजूद है? 1. संविधान क्या है?
 संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है। यह देश के शासन की रूपरेखा तय करता है और यह किसी भी अन्य कानून से ऊपर होता है। सरकार जब भी कोई नया कानून बनाती है, तो उसका आधार संविधान होना चाहिए। संविधान में यह स्पष्ट किया जाता है कि देश का शासन कैसा होगा, सत्ता किसके हाथ में होगी, नागरिकों के अधिकार क्या होंगे, और राज्य की शक्तियों की सीमाएं क्या होंगी।

 2. संविधानवाद क्या है? 
संविधानवाद एक ऐसी विचारधारा है, जिसमें कहा जाता है कि केवल संविधान होना ही पर्याप्त नहीं है। संविधान में कुछ मूल्य (Values) और आदर्श (Principles) होने जरूरी हैं, ताकि वह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सके और एक न्यायपूर्ण शासन स्थापित कर सके। यानी, अगर किसी देश में संविधान है, सरकार संवैधानिक है और वह संविधान के अनुसार शासन करती है — फिर भी वहाँ संविधानवाद नहीं होगा अगर संविधान में लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, समानता और विधि का शासन जैसे मूल सिद्धांत ही न हों।
 3. उदाहरण से समझें मान लें कि देश A और देश B, दोनों के पास संविधान है और दोनों में सरकारें उसी संविधान के अनुसार काम करती हैं। देश A के संविधान में लोकतंत्र, स्त्री-पुरुष समानता, सामाजिक न्याय, विधि का शासन, विकेंद्रीकरण जैसे मूल्य मौजूद हैं। देश B के संविधान में लिखा है कि "स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं होगा" या "राजा जो चाहे सजा दे सकता है"। दोनों देश संवैधानिक रूप से संचालित हो रहे हैं, लेकिन केवल देश A में संविधानवाद होगा। क्योंकि देश B के संविधान में मानवीय मूल्यों का अभाव है।
 4. संविधानवाद के आवश्यक मूल्य संविधानवाद के लिए कुछ मुख्य सिद्धांत आवश्यक माने जाते हैं: 
1. लोकतंत्र – नागरिकों की भागीदारी और जनसत्ता की मान्यता। 
2. विधि का शासन (Rule of Law) – कानून सब पर समान रूप से लागू हो और कानून न्यायपूर्ण हो।
 3. सामाजिक न्याय – समाज में सभी को समान अवसर और सम्मान मिले। 
4. लैंगिक न्याय – स्त्री और पुरुष दोनों के साथ समान व्यवहार। 
5. शक्तियों का विकेंद्रीकरण – सत्ता एक व्यक्ति या संस्था के हाथ में केंद्रित न होकर अलग-अलग स्तरों में बंटी हो। 
6. स्वतंत्रता और मानवीय मूल्य – नागरिकों की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा। 
7. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष न्यायपालिका – न्यायपालिका पर राजनीतिक या बाहरी दबाव न हो। 
8. निष्पक्ष चुनाव – स्वतंत्र और पारदर्शी तरीके से चुनाव होना। 
9. तटस्थ नौकरशाही – प्रशासनिक तंत्र का किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के प्रति पक्षपाती न होना। 

5. क्या 100% संविधानवाद संभव है?
 कोई भी देश इन सिद्धांतों को पूरी तरह (100%) लागू नहीं कर सकता। लेकिन जिस देश में ये मूल्य अधिक स्तर तक लागू होते हैं, वहां संविधानवाद की डिग्री अधिक होती है। उदाहरण: भारत में विकेंद्रीकरण है, लेकिन केंद्र के पास भी कई शक्तियां हैं। यह एक व्यावहारिक संतुलन है। 
6. संवैधानिक नैतिकता संवैधानिक नैतिकता का अर्थ है — सरकार का संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों के पालन के प्रति समर्पण। जितनी अधिक संवैधानिक नैतिकता होगी, उतना ही अधिक उस देश में संविधानवाद होगा। अगर सरकार संविधान के मूल्यों की अवहेलना करती है, तो संविधानवाद कमजोर पड़ जाएगा। 

7. भारत में संविधानवाद? 
अब सवाल यह है — क्या भारत में संविधानवाद है? इसका उत्तर केवल "हाँ" या "ना" में दें। क्योंकि यह एक बहस का विषय है कि भारत में लोकतंत्र, विधि का शासन, सामाजिक और लैंगिक न्याय किस स्तर तक लागू हैं। निष्कर्ष संविधान किसी देश के शासन का ढांचा है, लेकिन संविधानवाद उस ढांचे में निहित मूल्यों और आदर्शों की आत्मा है। सिर्फ संविधान होने से काम नहीं चलता, उसमें सही सिद्धांतों का होना और उनका पालन होना आवश्यक है।

निष्कर्ष
संविधान किसी भी देश की शासन-व्यवस्था का ढांचा है, लेकिन संविधानवाद उस ढांचे की आत्मा है, जिसमें लोकतंत्र, विधि का शासन, समानता, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय जैसे मूल्यों का पालन हो। केवल संविधान का अस्तित्व पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसमें निहित मानवीय मूल्यों का कार्यान्वयन ही असली संविधानवाद है। भारत सहित कोई भी देश 100% संविधानवाद हासिल नहीं कर पाया है, लेकिन जितना अधिक इन सिद्धांतों का पालन किया जाता है, उतना ही लोकतंत्र और न्याय मजबूत होते हैं। इसलिए संविधान और संविधानवाद दोनों का सही संतुलन ही एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और सशक्त राष्ट्र की नींव है।

 प्रश्न - कैसे भारत में रेगुलेटिंग एक्ट 1773 से लेकर 1947 तक संविधान के विकास की यात्रा ?

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