विधि के समक्ष समता (Equality Before Law)
परिचय Introduction
> भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 14 प्रत्येक व्यक्ति को "विधि के समक्ष समता" और "विधियों के समान संरक्षण" का मौलिक अधिकार प्रदान करता है। यह समानता के सिद्धांत को स्थापित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाए।
> "विधि के समक्ष समता" की अवधारणा इंग्लैंड के "रूल ऑफ लॉ" से ली गई है, जबकि "विधियों के समान संरक्षण" का विचार अमेरिकी संविधान से प्रेरित है। यह सिद्धांत संविधान की उद्देशिका में निहित है, जो न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता को प्राथमिक उद्देश्य मानता है।
> यह प्रावधान सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि विधि के समक्ष सभी समान हैं। अनुच्छेद 15 में यह व्यवस्था की गई है कि जाति, धर्म, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अवधारणा
> विधि के समक्ष समता का सिद्धांत ब्रिटिश विधिवेत्ता ए.वी. डाइसी द्वारा प्रतिपादित "विधि का शासन" (Rule of Law) के प्रमुख स्तंभों में से एक है। इस सिद्धांत के अनुसार, विधि के समक्ष सभी समान हैं, और किसी को भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है।
> रुबिंदर सिंह बनाम भारत संघ (1983) के मामले में यह स्पष्ट किया गया कि विधि के शासन का अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति के साथ कठोर, असभ्य या भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए, चाहे विधि और व्यवस्था की आवश्यकताएँ कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हों। अनुच्छेद 14 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों को विधि के अंतर्गत समान अधिकार और कर्तव्य प्राप्त हों। इस अनुच्छेद के तहत कोई भी वर्गीकरण तभी मान्य होगा जब वह तर्कसंगत और उचित हो।
इतिहास
> "विधि के समक्ष समता" की अवधारणा की जड़ें प्राचीन काल में देखी जा सकती हैं, लेकिन आधुनिक संदर्भ में इसकी नींव 1215 में इंग्लैंड के मैग्ना कार्टा में रखी गई। मैग्ना कार्टा ने यह घोषणा की कि राजा भी विधि के अधीन है और कोई भी व्यक्ति विधि से ऊपर नहीं है। इसने समानता की अवधारणा को मजबूती दी। इस सिद्धांत को आर (एल और अन्य) बनाम मैनचेस्टर सिटी काउंसिल (2001) के मामले में भी बरकरार रखा गया।
परिभाषाएँ
- > अनुच्छेद 14: "राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।" डॉ. जेनिंग्स: "विधि के समक्ष समता का अर्थ है कि समान परिस्थितियों में विधि समान रूप से लागू होनी चाहिए और समान व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।" मुख्य न्यायाधीश पंतजलि शास्त्री: "विधियों के समान संरक्षण का सिद्धांत, विधि के समक्ष समता का ही विस्तार है और दोनों का अर्थ मूलतः समान ही है।"
अपवाद
- > हालाँकि, संविधान कुछ व्यक्तियों और संस्थानों को विशेष छूट प्रदान करता है— 1. संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्य: अनुच्छेद 361क के तहत संसद और विधानसभा के सदस्य सत्र के दौरान किसी न्यायालय में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं होते। 2. सांसदों और विधायकों का विशेषाधिकार: अनुच्छेद 105 और 194 के तहत उनके विचारों और भाषणों पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। 3. राष्ट्रपति और राज्यपाल: अनुच्छेद 361 के अनुसार, वे अपने कार्यों के लिए न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं और उनके विरुद्ध कोई आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता। 4. अनुच्छेद 31ग: यदि राज्य कोई ऐसा कानून बनाता है जो अनुच्छेद 39 (ख) और (ग) में निहित निदेशक सिद्धांतों को लागू करता है, तो उसे अनुच्छेद 14 के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती। 5. विदेशी संप्रभु और राजनयिकों को छूट: अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत उन्हें आपराधिक और सिविल कार्यवाही से छूट प्राप्त होती है। 6. संयुक्त राष्ट्र संगठन (UNO) और इसकी एजेंसियाँ: इन्हें राजनयिक प्रतिरक्षा प्राप्त है।
युक्तियुक्त वर्गीकरण के लिये परीक्षण
> अनुच्छेद 14 वर्ग विधान का निषेध करता है, तथापि यह विशिष्ट उद्देश्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से विधायिका द्वारा व्यक्तियों, उद्देश्यों और संव्यवहार के युक्तियुक्त वर्गीकरण को निषिद्ध नहीं करता है।
अनुमेय वर्गीकरण के उदाहरण
- > 1. भौगोलिक वर्गीकरण: जैसे किसी विशेष क्षेत्र में लागू कर निर्धारण। 2. आयु के आधार पर वर्गीकरण: बच्चों और वयस्कों के लिए अलग-अलग विधियाँ। 3. सेवानिवृत्ति की आयु का निर्धारण: के. नागराज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1982) में सेवानिवृत्ति की आयु घटाने को सही ठहराया गया। 4. जेल में बंद कैदियों का मतदान अधिकार: चुनाव सुधारों के अंतर्गत, जेल में बंद व्यक्तियों को मतदान से वंचित किया जा सकता है। 5. राज्य का आर्थिक एकाधिकार: किसी क्षेत्र में सरकार द्वारा एकाधिकार स्थापित करना।
मनमानी का सिद्धांत
> समानता और मनमानी एक-दूसरे के विरोधी हैं। अनुच्छेद 14 का उद्देश्य किसी भी तरह की मनमानी को समाप्त करना है। ई.पी. रायप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1973) के मामले में न्यायालय ने कहा कि समानता एक गतिशील अवधारणा है और इसे मनमानी से प्रभावित नहीं किया जा सकता।
> इस सिद्धांत को बाद में मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) और आर.डी. शेट्टी बनाम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (1979) के मामलों में लागू किया गया, जिसमें न्यायालयों ने कहा कि मनमानी का अर्थ समानता से वंचित करना है।
निष्कर्ष
> विधि के समक्ष समता लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक प्रमुख आधार है। यह अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।
> इस सिद्धांत को संविधान में सम्मिलित करके इसे कानूनी सुरक्षा प्रदान की गई है।
> यदि किसी भी विधि या सरकारी नीति में समानता के अधिकार का उल्लंघन किया जाता है, तो व्यक्ति न्यायालय में इसकी चुनौती दे सकता है।
> इस प्रकार, अनुच्छेद 14 भारतीय लोकतंत्र की आत्मा है और यह विधि के शासन के बुनियादी स्तंभों में से एक बना रहेगा।।
0 टिप्पणियाँ