✨ भूमिका
कभी-कभी परिस्थितियाँ ऐसी उत्पन्न हो जाती हैं, जहाँ किसी संविदा को आगे निभाना न्यायसंगत नहीं रह जाता। या फिर, संविदा की शर्तों में ऐसी अनियमितता पाई जाती है, जो किसी पक्षकार के अधिकारों को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। ऐसे मामलों में, केवल हर्जाना पर्याप्त नहीं होता – आवश्यक होता है कि पूरी संविदा को ही विखंडित (Rescind) कर दिया जाए।
इसी उद्देश्य से विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के अध्याय 4 में धारा 27 से 30 तक ऐसी स्थितियों को विस्तार से बताया गया है, जिनमें संविदा को न्यायालय के आदेश से समाप्त (विखंडित) किया जा सकता है।
🧾 मुख्य बिंदु:
🔹 धारा 27 और 28 विशेष रूप से यह स्पष्ट करती हैं कि किन परिस्थितियों में संविदा का विखंडन संभव है और किस प्रकार से वाद की कार्यवाही की जा सकती है।
🔹 वहीं धारा 29 और 30, विखंडन से संबंधित नियमों और सीमाओं को स्पष्ट करती है।
📝 उदाहरण :
> मान लीजिए, कोई संविदा धोखे या दबाव के आधार पर संपन्न हुई हो, या फिर उसके पालन से किसी पक्ष को अनुचित हानि हो रही हो — ऐसी स्थिति में न्यायालय उस संविदा को समाप्त करने का आदेश दे सकता है।
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