आज की इस महत्वपूर्ण लेख में हम चर्चा करने जा रहे हैं — "एकात्मक और संघात्मक संविधान तथा सरकार की विश्लेषणात्मक व्याख्या"। भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में शासन व्यवस्था मुख्यतः दो रूपों में देखने को मिलती है — एकात्मक (Unitary) और संघात्मक (Federal)। इन दोनों शासन व्यवस्थाओं की अपनी-अपनी विशेषताएँ, लाभ और कमियाँ हैं। इस लेख में हम इन दोनों व्यवस्थाओं को विस्तार से समझेंगे। यह विषय भारतीय संविधान, राजनीति विज्ञान और सामान्य ज्ञान के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भूमिका
भारत जैसे विविधता भरे देश में संविधान की भूमिका सिर्फ कानूनों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मार्गदर्शक है जो देश की संरचना, उसकी सरकार, नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। जब हम सरकार की बात करते हैं तो वह संविधान की संरचना के अनुरूप होती है।
अर्थ
'संघ शासन' शब्द के लैटिन शब्द ' फोएडस' (foedus) से लिया गया है, जिसका अभिप्राय है संधि या 'समझौता'
संघीय शासन व्यवस्था का निर्माण मुख्य रूप से दो प्रकार से होता है — एकीकरण और विभेदीकरण। एकीकरण उस प्रक्रिया को कहते हैं, जब कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्य आपस में मिलकर एक बड़े और मज़बूत संघ का निर्माण करते हैं। आमतौर पर ऐसा तब होता है जब ये राज्य सैन्य दृष्टि से कमजोर होते हैं या आर्थिक रूप से पिछड़े होते हैं। अपनी सुरक्षा, विकास और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत पहचान के लिए वे एक साझा केंद्रीय सरकार के अंतर्गत आ जाते हैं, जबकि अपनी-अपनी क्षेत्रीय सरकारें बनाए रखते हैं। इस प्रकार की संघीय संरचना का सबसे प्रमुख उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) है। अमेरिकी क्रांति (1775-1783) के बाद, वर्ष 1787 में अमेरिका का गठन हुआ। उस समय इसमें केवल तेरह राज्य शामिल थे, लेकिन समय के साथ इसका विस्तार होता गया और आज इसमें कुल पचास राज्य हैं। अमेरिका को विश्व का पहला और सबसे पुराना संघीय शासन वाला देश माना जाता है, जिसने संघीय ढांचे को एक मजबूत लोकतांत्रिक स्वरूप दिया।
इसके विपरीत, विभेदीकरण में स्थिति बिल्कुल अलग होती है। इसमें पहले एक बड़ा और एकीकृत देश होता है, लेकिन समय के साथ उसे छोटे-छोटे स्वायत्त इकाइयों या राज्यों में बाँट दिया जाता है, और इन राज्यों को पर्याप्त अधिकार प्रदान किए जाते हैं। यह बँटवारा केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए नहीं, बल्कि स्थानीय शासन को मज़बूती देने और विविधता को सम्मान देने के उद्देश्य से किया जाता है। हालांकि, इन राज्यों के ऊपर एक केंद्रीय सरकार भी रहती है, जो राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर निर्णय लेती है। इस प्रकार के संघीय ढांचे का उदाहरण कनाडा है। कनाडा का निर्माण वर्ष 1867 में हुआ था। शुरुआत में इसमें केवल चार प्रांत थे, लेकिन आज इसमें दस प्रांत शामिल हैं। प्रत्येक प्रांत को अपने-अपने क्षेत्रीय मामलों में पर्याप्त स्वायत्तता प्राप्त है, जिससे वे स्थानीय जरूरतों के अनुरूप निर्णय ले सकते हैं।
इस प्रकार, संघ शासन का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है कि वह कई छोटे राज्यों के मिलकर बनने से बना है, या फिर किसी बड़े एकीकृत देश के विभाजन के माध्यम से। एकीकरण और विभेदीकरण दोनों ही परिस्थितियों में उद्देश्य यही रहता है कि शक्ति का बँटवारा इस प्रकार किया जाए जिससे केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों पर शासन प्रभावी रूप से संचालित हो सके।
सरकार मुख्यतः दो प्रकार की होती है:
1. एकात्मक सरकार (Unitary Government)
2. संघात्मक सरकार (Federal Government)
यदि किसी देश का
1.संविधान संघात्मक है, - तो सरकार भी संघात्मक होगी।
2.और अगर संविधान एकात्मक है,- तो सरकार भी उसी प्रकार की होगी।
आइए आज के इस पाठ में हम पहले एकात्मक संविधान और सरकार की विस्तृत चर्चा करें।
एकात्मक संविधान और सरकार क्या होती है?
एकात्मक संविधान और सरकार का अर्थ है कि किसी देश में केवल एक ही केंद्रीय सरकार होती है,
यानी जहां एकात्मक संविधान वहां एकात्मक सरकार जो पूरे देश पर शासन करती है। ऐसी व्यवस्था में राज्यों या प्रांतों को स्वतंत्र शक्ति नहीं दी जाती है, बल्कि वे केंद्र सरकार द्वारा सौंपे गए अधिकारों के अनुसार कार्य करते हैं।
दूसरे शब्दों में, एकात्मक सरकार का मतलब है कि पूरे देश में एक ही सर्वोच्च सरकार होती है। सभी शक्तियाँ उसी के पास केंद्रित रहती हैं और नीति-निर्माण, कानून-निर्माण एवं प्रशासनिक अधिकार उसी के अधीन होते हैं। इसलिए एकात्मक प्रणाली में सत्ता का केंद्रीकरण होता है। की एकात्मक सरकार को ही कानून बनाना, नीतियाँ निर्धारित करना, बजट तैयार करना और लागू करना — सभी कार्य एक ही केंद्रीय सत्ता के अधीन होते हैं।
उदाहरण:
ब्रिटेन — एकात्मक सरकार का प्रमुख उदाहरण, जहाँ संसद सर्वोच्च संस्था है।
फ्रांस और जापान भी एकात्मक सरकार के प्रभावशाली उदाहरण हैं।
एकात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ:
1. एक ही केंद्रीय सरकार – पूरे देश की राजनीतिक शक्ति एक ही संस्था के हाथों में होती है।
2. राज्यों की कोई स्वतंत्र संवैधानिक स्थिति नहीं होती – वे केवल प्रशासनिक इकाइयाँ होती हैं।
3. लिखित संविधान अनिवार्य नहीं होता – जैसे ब्रिटेन में unwritten संविधान है।
4. एकक विधायिका – अधिकतर एकात्मक देशों में एक ही सदन की संसद होती है।
5. पूर्ण संप्रभुता – सभी अधिकार केंद्र के पास होते हैं।
6. एकल नागरिकता – नागरिकों को केवल एक स्तर की नागरिकता प्राप्त होती है।
7. नीतियों की एकरूपता – पूरे देश में एक जैसी योजनाएं और कानून लागू होते हैं।
एकात्मक सरकार के लाभ:
1. द्रुत निर्णय प्रक्रिया – निर्णय जल्दी होते हैं क्योंकि कई स्तर की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
2. प्रशासनिक लागत में कमी – केवल एक ही स्तर की सरकार होने के कारण खर्च कम होता है।
3. नीतियों की एकरूपता – सभी नागरिकों के लिए समान नियम और कानून।
4. सामाजिक एकता को बल – सभी नागरिक एक जैसे अधिकारों और जिम्मेदारियों के तहत आते हैं।
5. आपातकाल में त्वरित कार्यवाही – केंद्रीकृत शक्ति के कारण संकट के समय निर्णय शीघ्र लिए जा सकते हैं।
6. राज्य-केंद्र संघर्ष की संभावना नहीं – राज्य सरकारें स्वतंत्र नहीं होतीं, इसलिए टकराव नहीं होता।
एकात्मक सरकार की सीमाएँ:
1. स्थानीय आवश्यकताओं की अनदेखी – एक जैसी नीति से विविध क्षेत्रों की समस्याओं का समाधान कठिन होता है।
2. प्रतिनिधित्व की कमी – दूरस्थ या अल्पसंख्यक क्षेत्रों की आवाज़ नहीं पहुंच पाती।
3. प्रशासनिक बोझ – सारे कार्य केंद्र सरकार पर होने से निर्णय धीमे भी हो सकते हैं।
4. प्रवृत्तियाँ केंद्रीकृत रहती हैं – सत्ता के अत्यधिक केंद्रीकरण से अधिनायकवाद का खतरा होता है।
5. विविधता को स्वीकार नहीं करती – सांस्कृतिक, भाषाई या सामाजिक विविधता के लिए जगह कम होती है।
किन देशों के लिए उपयुक्त है एकात्मक सरकार?
1.छोटे क्षेत्रफल वाले देश
2.एकसमान संस्कृति और भाषा वाले देश
3.कम जनसंख्या और राजनीतिक स्थिरता वाले देश
4.ब्रिटेन, जापान, फ्रांस जैसे देशों में एकात्मक प्रणाली सफल रही है क्योंकि वहाँ विविधता अपेक्षाकृत कम है और शासन केंद्रीकृत रूप से सुचारू रूप से चलता है।
संघात्मक संविधान एवं संघात्मक सरकार (Federal Constitution & Government)
अर्थ
संघात्मक सरकार में सत्ता का बँटवारा केंद्र और राज्यों के बीच होता है। दोनों स्तर की सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र होती हैं और एक-दूसरे के अधीन नहीं होतीं। लेकिन द्वैध सरकार में केंद्र सरकार और
प्रांतीय सरकारें एक दूसरे के साथ-साथ अस्तित्व में रहती हैं क्योंकि दोनों की अपनी अपनी पृथक संस्थाएं हैं
Dual Government System — केंद्र और राज्य दोनों की अलग-अलग सरकारें। क्योंकि एक केंद्र 1.सरकार और कई प्रांतिय सरकारें होती हैं प्रत्येक को संविधान द्वारा क्रमशः अपने क्षेत्र में संप्रभुत शक्तियां प्रदान की गई है । केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्व के मामलों जैसे रक्षा विदेशी मुद्रा संचार आदि को देखते हैं जबकि दूसरी सरकार राज्य सरकार क्षेत्रीय एवं स्थानीय मुद्दों को देखते हैं जैसे सार्वजनिक व्यवस्था कृषि , स्वस्थ , स्थानीय ,प्रशासन, आदि।
2.केंद्र एवं राज्य के मध्य शक्तियों का बंटवारा होता है। इसमें में सातवीं अनुसूची में केंद्र राज्य दोनों से संबंधित सूची निहित है केंद्र, सूची में 90 विषय हैं (जो मूलरूप से 97 विषय थे) राज्य सूची में 59 विषय हैं (जो मूलरूप से 66 विषय थे) और सातवीं सूची में 52 विषय है (जो मूलरूप से 47 विषय है)।
इस प्रकार समवर्ती सूची के विषय पर केंद्र एवं राज्य दोनों कानून बना सकते हैं टकराव की स्थिति में केंद्र की विधि प्रभावी होगी अवशेषी विषय अर्थात जो किसी भी सूची में नहीं है केंद्र को दिए गए हैं
3. संविधान लिखित होना चाहिए ।
4.पृथक एवं स्वतंत्र न्यायपालिका होती है।
5.संविधान कठोर होना चाहिए ।
6.संविधान सर्वोच्च होता है।
भारत (या किसी भी लोकतांत्रिक देश) में संविधान सबसे ऊपर होता है।
इसका मतलब है कि केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, दोनों को जो भी कानून बनाना है, या जो भी नीतियाँ लागू करनी हैं, वह संविधान के अनुसार ही होना चाहिए।
अगर कोई कानून संविधान के प्रावधानों के खिलाफ बनता है —
तो नागरिक या प्रभावित पक्ष अदालत में (उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय) चुनौती दे सकता है।
अदालत न्यायिक समीक्षा के अधिकार का प्रयोग करके यह देखती है कि वह कानून संविधान के अनुरूप है या नहीं।
अगर अदालत को लगता है कि कानून संविधान के विरुद्ध है, तो वह उसे अवैध (Unconstitutional) घोषित कर सकती है।
इसीलिए, सरकार के तीनों अंग —
1. विधायिका (Legislature) → कानून बनाती है
2. कार्यपालिका (Executive) → कानून लागू करती है
3. न्यायपालिका (Judiciary) → कानून की व्याख्या और संविधान की रक्षा करती है
— इन तीनों को अपने-अपने अधिकार-क्षेत्र में और संविधान की सीमा में रहकर ही काम करना चाहिए।
7. द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका होती है।
उदाहरण के लिए - उच्च सदन, निम्न सदन।
भारतीय संविधान ने द्विसदनीय विधायिका (Bicameral Legislature) की व्यवस्था की है, जिसका अर्थ है कि संसद में दो सदन होते हैं — उच्च सदन (राज्यसभा) और निम्न सदन (लोकसभा)।
इन दोनों सदनों की भूमिका और प्रतिनिधित्व का स्वरूप अलग-अलग है।
राज्यसभा को "उच्च सदन" कहा जाता है और यह भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा नहीं चुने जाते, बल्कि राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य, आनुपातिक प्रतिनिधित्व की पद्धति से इन्हें चुनते हैं। राज्यसभा का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र सरकार किसी भी नीति या कानून में राज्यों के हितों की अनदेखी न करे। यद्यपि शक्तियों के मामले में राज्यसभा, लोकसभा की तुलना में कुछ कमज़ोर है (विशेषकर वित्तीय मामलों में), फिर भी यह राज्यों को एक मज़बूत मंच देती है, ताकि वे अपने अधिकारों और हितों की रक्षा कर सकें और केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप को रोका जा सके।
दूसरी ओर, लोकसभा को "निम्न सदन" कहा जाता है, लेकिन वास्तविक राजनीतिक शक्ति के मामले में यह अधिक प्रभावशाली है। इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं, इसलिए यह पूरे देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। लोकसभा का कार्य देश के नागरिकों की इच्छाओं और आवश्यकताओं को संसद में आवाज़ देना है।
इस प्रकार, भारतीय संसद की द्विसदनीय संरचना एक संतुलित तंत्र बनाती है, जिसमें एक ओर जनता की सीधी भागीदारी है (लोकसभा के माध्यम से) और दूसरी ओर राज्यों के हितों की सुरक्षा (राज्यसभा के माध्यम से) सुनिश्चित होती है।
7. कठोर संविधान
समझने के लिए
लिखित एवं कठोर संविधान — शक्तियों के संरक्षण के लिए संविधान में संशोधन कठिन होता है।
स्वतंत्र न्यायपालिका विवादों को सुलझाती है।
संघीय प्रणाली आमतौर पर बड़े और विविध देशों में अपनाई जाती है (जैसे — भारत, अमेरिका)।
संघात्मक सरकार के लाभ
स्थानीय समस्याओं का समाधान — राज्य अपने क्षेत्र के अनुसार कानून और नीतियाँ बना सकते हैं जिससे क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं पूरी होती है।
विविधता में एकता — विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलता है क्योंकि ज्यादा व्यापक सरकारहै इसलिए अधिक प्रतिनिधित्व पाया जाता है
लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ती है — नागरिक स्थानीय स्तर पर निर्णय-प्रक्रिया में अधिक शामिल होते हैं क्योंकि जब क्षेत्रीय सरकारी (केंद्र सरकार नहीं) कानून बनाती है तो जिस क्षेत्र के लिए कानून बनाती है तो उसे क्षेत्र के अनुसार नीतियां कानून उस उसे क्षेत्र के लिए बेहतर होता है
शक्ति-संतुलन — केंद्र और राज्यों के बीच सत्ता विभाजन से सत्ता का दुरुपयोग कम होता है जिसे सरकार के निरंकुश होने की संभावना कम है
संघात्मक सरकार की कमियाँ
निर्णय लेने में देरी — केंद्र और राज्यों के बीच सहमति बनाना समय ले सकता है अर्थात निर्णय विलंब हो सकता है।
विवाद की संभावना — शक्तियों के बँटवारे को लेकर टकराव हो सकता है जिसे केंद्र एवं राज्य के बीच विवादजदा होते हैं।
आपातकालीन स्थिति में कठिनाई — संकट के समय त्वरित निर्णय लेने में बाधा यानी आपातकाल 352,356,359, में समस्या से निपटने में दिक्कतें आती है
अत्यधिक स्थानीयता का खतरा — अत्यधिक क्षेत्रीय नीतियाँ राष्ट्रीय एकता को प्रभावित कर सकती हैं अर्थात पूरे देश के एक समान नीतियों या कानून नहीं होती है कभी-कभी नीतियों एवं कानून का दोहराव हो जाता है
न्यायपालिका ज्यादा शक्तिशाली हो जाती है
स्थितियां जब संघात्मक सरकार जब एकात्मक हो जाता है
भारत का संविधान संघीय ढाँचे पर आधारित है लेकिन इसमें कई एकात्मक विशेषताएँ भी हैं। उदाहरण के लिए:
संविधान में केंद्रीय सत्ता को आपातकाल की स्थिति में अत्यधिक अधिकार मिलते हैं (अनुच्छेद 352, 356, 359)।
केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा सातवीं अनुसूची में दिया गया है।
कुछ मामलों में राज्यों के अधिकार सीमित हैं, जिससे भारत को अर्ध-संघीय (Quasi-Federal) प्रणाली वाला देश कहा जाता है।
निष्कर्ष:
एकात्मक संविधान और सरकार का ढांचा छोटे और सांस्कृतिक रूप से एकरूप देशों के लिए काफी प्रभावी होता है। इस प्रकार की प्रणाली में शासन सरल, तीव्र और प्रभावी हो सकता है, लेकिन विविधतापूर्ण और विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए यह व्यवस्था कुछ हद तक अनुपयुक्त हो सकती है। भारत जैसे देश ने इसी कारण संघात्मक ढांचे को अपनाया।
इस विषय को समझना न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि हमें अपने देश के शासन तंत्र और उसके विकास की दिशा को समझने में भी मदद करता है।
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