संपत्ति के कब्जे का प्रत्युद्धरण Recovering Possession of Property

 कभी-कभी ऐसा होता है कि हमारी ज़मीन या मकान पर कोई दूसरा व्यक्ति कब्ज़ा कर लेता है और उसे खाली करने से मना कर देता है। ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिए? क्या कानून हमें ऐसा कोई अधिकार देता है जिससे हम अपनी संपत्ति को दोबारा हासिल कर सकें?

इन्हीं सवालों का उत्तर हमें विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 के अध्याय 1, धारा 5 में मिलता है। इस प्रावधान के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी निर्दिष्ट स्थावर संपत्ति (जैसे ज़मीन या मकान) के कब्जे का विधिसम्मत हकदार है, तो वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार न्यायालय से संपत्ति को वापस पाने का दावा कर सकता है।

> 🔹 धारा 5 का मूल प्रावधान इस प्रकार है:

निर्दिष्ट स्थावर संपत्ति का प्रत्युद्धरण — जो व्यक्ति किसी निर्दिष्ट स्थावर संपत्ति के कब्जे का हकदार है, वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) द्वारा उपबंधित प्रकार से उसका प्रत्युघरण कर सकेगा।”


लेकिन हकदार व्यक्ति न्यायालय के द्वारा ही कब्जा का सकता है वह किसी प्रकार के शारीरिक बल धमकी या जबरदस्ती करके नहीं हटा सकता।

यह धारा केवल स्थावर संपत्ति (immovable property) के लिए है — जैसे ज़मीन, मकान।

यदि कब्जाधारी बिना अधिकार के वहाँ रुका है, तो हकदार व्यक्ति न्यायालय में दावा कर सकता है।

यह कब्जा वापस पाने का वैधानिक तरीका है — यानी कोई व्यक्ति खुद से जबरन खाली नहीं करवा सकता, उसे न्यायालय जाना होगा।
वैध स्वामी बनाम कब्जाधारी

विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 5 के अंतर्गत, वादी (Plaintiff) को केवल यह सिद्ध करना होता है कि वह निर्दिष्ट स्थावर संपत्ति के कब्जे का वैध हकदार है।
यदि यह हक प्रमाणित हो जाता है, तो वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अनुसार न्यायालय से संपत्ति के प्रत्युद्धरण (Recovery of Possession) की माँग कर सकता है।

लेकिन इसके साथ ही एक सामान्य विधिक सिद्धांत (General Legal Principle) भी है, जो कहता है:

> “जो व्यक्ति किसी संपत्ति पर शांतिपूर्ण और दीर्घकालिक कब्जे में है, उसे कानून यह सुरक्षा देता है कि उसे केवल असली स्वामी ही हटवा सकता है, कोई तीसरा व्यक्ति नहीं।”



यह सिद्धांत कब्जाधारी व्यक्ति की संरक्षा (Protection of Possession) सुनिश्चित करता है, ताकि किसी व्यक्ति को कानून हाथ में लेकर जबरन हटाया न जा सके।
ऐसे मामलों में स्वामी को भी न्यायालय की सहायता लेनी होती है।

📌 संक्षेप में:

धारा 5 वादी को यह अधिकार देती है कि यदि उसके पास संपत्ति का वैध हक है, तो वह न्यायालय से कब्जा वापस पा सकता है।

लेकिन कब्जे में रहने वाले व्यक्ति को भी कानून तब तक सुरक्षा देता है, जब तक कि वैध स्वामी उसे न्यायालय के आदेश से हटवाए।

🔹 प्रासंगिक न्यायनिर्णय: एन कोठारी बनाम जान (1999)

इस निर्णय में माननीय न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:
> "विधि का एक स्थापित सिद्धांत यह है कि किसी संपत्ति का वास्तविक स्वामी भी यदि संपत्ति से बेदखल कर दिया गया हो, तो वह स्वयं उस कब्जे को बलपूर्वक नहीं ले सकता, बल्कि उसे विधिसम्मत प्रक्रिया के माध्यम से ही कब्जा पुनः प्राप्त करना होगा।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि:

> "विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1963 की धारा 5 के अंतर्गत, वह व्यक्ति जो संपत्ति से बेदखल कर दिया गया है, यदि उसके पास कब्जे का वैध हक है, तो वह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत न्यायालय में वाद दायर कर कब्जा पुनः प्राप्त कर सकता है।"

📌 न्यायालय की प्रमुख टिप्पणी का सार:

कानून हाथ में लेकर कब्जा वापस लेना उचित नहीं है, भले ही व्यक्ति असली स्वामी ही क्यों न हो।

कानून न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से कब्जा दिलवाने की अनुमति देता है।

इससे कब्जे में रहने वाले व्यक्ति की सुरक्षा भी बनी रहती है, और कानूनी प्रक्रिया का सम्मान होता है।

🎯 प्रश्न में उपयोगी निष्कर्ष:

> "कोई व्यक्ति – चाहे वह स्वामी ही क्यों न हो – किसी संपत्ति पर जबरन कब्जा नहीं कर सकता। उसे धारा 5 के तहत न्यायालय से ही प्रत्यु्द्धरण प्राप्त करना होगा।"





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