जज के आने पर खड़ा क्यों होते हैं? जानिए इस अदालती परंपरा का गहरा अर्थ

 

📌 प्रस्तावना

जब किसी अदालत में कोई न्यायाधीश प्रवेश करता है, तो वहाँ उपस्थित सभी लोग—वकील, वादी, प्रतिवादी, गवाह और यहां तक कि अदालत के कर्मचारी भी—खड़े हो जाते हैं। यह दृश्य जितना सामान्य प्रतीत होता है, उतना ही गहरा उसका सामाजिक, सांस्कृतिक और न्यायिक महत्व है। यह केवल एक शिष्टाचार नहीं, बल्कि भारतीय न्यायपालिका की एक परंपरा है, जो न्याय के प्रति श्रद्धा और संस्थागत सम्मान की अभिव्यक्ति है।

इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि जज के आते ही खड़े क्यों हुआ जाता है? इसका इतिहास क्या है? इसका कानूनी और नैतिक महत्व क्या है? और क्या यह केवल भारत में ही होता है या पूरी दुनिया की अदालतों में ऐसा होता है?


⚖️ 1. परंपरा की जड़ें – न्याय का आदर

न्यायधीश के कक्ष में प्रवेश करते ही सभी का खड़ा होना एक सांकेतिक कार्य है, जो यह दर्शाता है कि हम उस संस्था के प्रति सम्मान प्रकट कर रहे हैं जो न्याय करती है। यह न्यायाधीश के व्यक्तिगत सम्मान से ज़्यादा, उनके पद और न्यायपालिका की गरिमा को मान्यता देने की परंपरा है।

भारत की न्याय प्रणाली ब्रिटिश काल से प्रभावित है, और यह परंपरा वहीं से आई है। ब्रिटेन की अदालतों में भी, जब न्यायाधीश प्रवेश करते हैं, तो सभी लोग खड़े होते हैं। यह एक तरीके से न्याय के "स्मार्ट वर्दीधारी प्रतिनिधि" के प्रति जनता की श्रद्धा है।


🏛️ 2. केवल परंपरा नहीं – संवैधानिक और नैतिक आधार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 50 के अनुसार, "न्यायपालिका को कार्यपालिका से स्वतंत्र रहना चाहिए।" यह स्वतंत्रता तभी प्रभावी रूप से लागू हो सकती है जब समाज में न्यायपालिका को एक विशेष गरिमा प्राप्त हो।

इसलिए न्यायाधीश का अदालत में प्रवेश होते ही खड़े होना, उनके प्रति झुकाव नहीं बल्कि न्याय प्रणाली के प्रति विश्वास और गरिमा को दर्शाता है। यह लोगों को यह भी याद दिलाता है कि न्याय का आसन सर्वोपरि है और उसका सम्मान आवश्यक है।


🙇‍♂️ 3. सम्मान और भय में अंतर समझना ज़रूरी है

कुछ लोग सोचते हैं कि जज के आते ही खड़े होना एक प्रकार का भय या झुकाव है। लेकिन सच यह है कि यह सम्मान का भाव है, भय का नहीं। जैसे हम राष्ट्रगान के समय खड़े होते हैं या किसी शिक्षक के कक्षा में प्रवेश पर खड़े होते हैं, वैसे ही यह एक सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति है – कि हम न्याय और उसके प्रतिनिधियों को महत्वपूर्ण मानते हैं।

यह खड़े होना हमें याद दिलाता है कि हम एक ऐसे स्थान पर हैं, जहाँ नियम, अनुशासन और निष्पक्षता सर्वोपरि हैं।


🌏 4. क्या अन्य देशों में भी ऐसा होता है?

जी हां, यह परंपरा केवल भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे कई देशों में अदालत की कार्यवाही शुरू होने पर कोर्ट क्लर्क (court usher) ये कहते हैं:

“All rise! The Honorable Judge [Name] presiding.”

इस पर हर व्यक्ति खड़ा हो जाता है जब तक कि न्यायाधीश खुद बैठने का संकेत न दें।

यह दर्शाता है कि न्यायिक गरिमा की यह परंपरा एक वैश्विक मान्यता है, न कि किसी एक संस्कृति या समाज की उपज।


🧑‍⚖️ 5. क्या कानून में इसका उल्लेख है?

भारतीय कानून में सीधे तौर पर ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो कहता हो कि ‘जज के आते ही खड़ा होना चाहिए’। लेकिन यह अदालती शिष्टाचार (courtroom etiquette) का हिस्सा है, जो अधिवक्ताओं और नागरिकों को व्यवहार संहिता के रूप में सिखाया जाता है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से अधिवक्ताओं के लिए बनाए गए एथिक्स कोड में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि एक वकील को न्यायालय के प्रति पूर्ण सम्मान और मर्यादा का पालन करना चाहिए।

इस तरह, यह परंपरा कानून के भीतर नैतिक और व्यवस्थित ढंग से समाहित है।

इतिहास: कहां से शुरू हुई जज के लिए खड़े होने की परंपरा?

काम माना जाता था। और जो व्यक्ति न्याय दे रहा है, वह ईश्वर की ओर से नियुक्त एक प्रतिनिधि है। इसलिए जब न्यायाधीश आता है, तो खड़े होकर उसका सम्मान करना ईश्वर के प्रति श्रद्धा जैसा समझा जाता था। 🔹 3. न्याय के प्रतीक रूप को सम्मान अंग्रेज़ों की न्यायिक संस्कृति में जज सामान्य व्यक्ति नहीं, बल्कि "The Bench" यानी न्याय का प्रतीक माना जाता था। खड़े होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति न्याय की शक्ति, निष्पक्षता और गरिमा के सामने नतमस्तक है। 🔹 4. भारत में इस परंपरा का स्थानांतरण जब अंग्रेजों ने भारत में 1861 के इंडियन हाई कोर्ट्स एक्ट के तहत अदालतें स्थापित कीं, तब वे अपने साथ पूरा "courtroom etiquette" भी लाए। तब से ही भारत की अदालतों में: जज के आते ही खड़े होना "My Lord", "Your Honour" कहना जज के उठते समय खड़ा रहना जैसे व्यवहार लागू हो गए। यह परंपरा स्वतंत्र भारत में भी बनी रही, क्योंकि भारतीय संविधान ने भी न्यायपालिका को सबसे उच्च और गरिमामयी संस्था माना।


📚 6. अदालती आचरण: खड़ा होना और अन्य व्यवहार

अदालत में केवल खड़ा होना ही नहीं, बल्कि यह भी अपेक्षित होता है कि व्यक्ति:

  • मोबाइल फोन बंद रखे,
  • उचित पोशाक में हो,
  • न्यायाधीश की अनुमति के बिना बोलने की कोशिश न करे,
  • अदालती भाषा (अधिकांशतः अंग्रेज़ी या क्षेत्रीय भाषा में निर्धारित) का ही उपयोग करे,
  • जज को "Your Honour" या "My Lord" कहकर संबोधित करे।

यह सभी व्यवहार मिलकर उस वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसमें न्याय अपनी सबसे निष्पक्ष और गंभीर अवस्था में कार्य करता है।


👩‍🎓 7. छात्रों और आम जनता के लिए सीख

आज के युवा जो लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं, या वे जो अदालतों में गवाह या पक्षकार बनकर जाते हैं, उनके लिए यह परंपरा एक नैतिक पाठ है। यह बताती है कि संस्थाओं के प्रति सम्मान न केवल कानून में बल्कि समाज में भी स्थायित्व लाता है।

जब हम न्यायाधीश के लिए खड़े होते हैं, तो हम न्याय की प्रक्रिया, संविधान और समाज में नियमों की अहमियत को स्वीकार करते हैं।


🛑 8. क्या कभी किसी ने इसका विरोध किया है?

हाल के वर्षों में, कुछ नागरिकों और बुद्धिजीवियों ने तर्क दिया है कि "खड़े होने की यह परंपरा अब औपनिवेशिक सोच की झलक देती है", लेकिन न्यायालयों ने अब तक इसे "आवश्यक और गरिमामयी आचरण" माना है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने एक बार कहा था:

“Respect is not for the individual judge, but for the seat of justice.”

यह कथन खुद में ही इस परंपरा की रक्षा करता है।


🙏 9. निष्कर्ष: परंपरा में छुपा न्याय का दर्शन

अंत में यह कहा जा सकता है कि जज के आने पर खड़ा होना एक 'छोटी-सी क्रिया' है, लेकिन उसका अर्थ बहुत बड़ा है। यह संविधान की आत्मा—न्याय, स्वतंत्रता और गरिमा—का जीवंत प्रदर्शन है। यह हर नागरिक के भीतर न्याय के प्रति आदर और विश्वास को बढ़ावा देता है।

किसी न्यायाधीश का आगमन केवल एक व्यक्ति का प्रवेश नहीं है, वह “न्याय का प्रतीक” बनकर आता है। इसलिए खड़े होकर हम उस आदर्श का, उस भरोसे का, और उस व्यवस्था का स्वागत करते हैं जो समाज में कानून के शासन को बनाए रखने का कार्य करती है।

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