भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)
परिचय -- यह लेख लखनऊ विश्वविद्यालय का छात्र दीपांकारशील प्रियदर्शी द्वारा लिखा गया है जिनमें भारत के महान्यायवादी के बारे में अनुच्छेद के साथ विस्तार पूर्वक लिखा गया है।
भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी के बारे में प्रावधान किया गया है महान्यायवादी देश का सर्वोच्च कानून अधिकारी होता है वह भारत सरकार का मुख्य कानून सलाहकार और उच्चतम न्यायालय में सरकार का प्रमुख वकील होता है
महान्यायवादी की नियुक्ति महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है
महान्यायवादी के के पद के लिए योग्यता महान्यायवादी में पद के लिए व्यक्ति में वह सारी योग्यता होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए जरूरी होती है साधारण शब्दों में
1 भारत का नागरिक हो।
2 उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का 5 वर्षों का अनुभव हो या किसी उच्च न्यायालय में वकालत का 10 वर्षों का अनुभव हो।
3 राष्ट्रपति की राय में वह न्यायिक मामलों का योग्य व्यक्ति हो कार्यकाल भारतीय संविधान में महान्यायवादी के कार्यकाल को निश्चित किया गया है इसके अलावा संविधान में उसको हटाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है वह अपने पद पर राष्ट्रपति के प्रसाद पर्याप्त तक बने रह सकता है इसका तात्पर्य यह है कि उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है राष्ट्रपति को किसी समय अपना त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है।
पारिश्रमिक संविधान में महान्यायवादी का पारिश्रमिक तय नहीं किया गया है उसे राष्ट्रपति के द्वारा तय पारिश्रमिक ही मिलता है।
कार्यकाल एवं शक्तियां
भारत सरकार के मुख्य कानून अधिकारी के रूप में महान्यायवादी की कर्तव्य निम्नलिखित है
1. भारत सरकार को विधि संबंधित विषयों पर सलाह देना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंप गए हो।
2. विधि से संबंधित ऐसे अन्य कर्तव्य का पालन करना जो राष्ट्रपति द्वारा उसे सौंप गए हो।
3. संविधान या किसी अन्य विधि द्वारा दिए गए कार्यों को पूरा करना।
राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी को निम्नलिखित कार्य सौंप सकता है
1. भारत सरकार से संबंधित मामलों को लेकर उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार की ओर से पेश करना।
2.संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करना।
3. सरकार से संबंधित किसी मामले में उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई का अधिकार।
महान्यायवादी के अधिकार
1.भारत के किसी भी क्षेत्र में किसी भी अदालत में महान्यायवादी को सुनवाई का अधिकार है।
2. संविधान के अनुच्छेद 88 के अनुसार व सांसद के दोनों सदनों में बोलने और कार्यवाही में भाग लेने तथा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में मत देने के अलावा भाग लेने का अधिकार रखता है। महान्यायवादी के पद की सीमाएं
1.वह अपनी राय को भारत सरकार के ऊपर थोप नहीं सकता। 2. वह भारत सरकार के खिलाफ कोई सलाह नहीं दे सकता। 3.वह भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी आपराधिक मामले में किसी आरोपी का बचाव नहीं कर सकता।
4.वह भारत सरकार की अनुमति के बिना किसी कंपनी के निर्देश नहीं बन सकता।
भारत के पहले महान्यायवादी ऐम सी शीतल वार्ड शीतलवाड थे जिनका कार्यकाल 1950 से 1963 तक था। जबकि वर्तमान में भारत के महान्यायवादी आर वेंकटरमनी है। जो भारत के 16वें महान्यायवादी हैं जिन्होंने को अपना पद ग्रहण किया है उन्होंने के के वेणुगोपाल की जगह ली है जो भारत के 15वें महान्यायवादी थे।
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