अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो अनुच्छेद 19 से 22 तक दिए गए स्वतंत्रता के अधिकारों में शामिल है। यह सभी व्यक्तियों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
यह केवल "जीने के अधिकार" तक सीमित नहीं है, बल्कि समय-समय पर उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के निर्णयों ने इसका क्षेत्र काफी बढ़ा दिया और कई नए अधिकारों को भी अनुच्छेद 21 के अंतर्गत शामिल कर लिया।
अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रमुख अधिकार एवं संबंधित केस
1. मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार
केस: फ्रांसिस कोरेली बनाम भारत संघ – न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 21 में "प्राण" का अर्थ केवल पशुवत जीवन नहीं, बल्कि मानव गरिमा के साथ जीवन जीना है।
2. निजता का अधिकार (Right to Privacy)
केस: एम.पी. शर्मा बनाम सतीश चन्द्र – 8 जजों की बेंच ने निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 में शामिल नहीं किया।
केस: खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य – न्यायालय ने कहा कि निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है।
केस: पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ – 9 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक निर्णय में निजता के अधिकार को स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 21 में शामिल किया।
3. जीविका कमाने का अधिकार
केस: ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे म्युनिसिपल कॉरपोरेशन – यह अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, लेकिन इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
4. विदेश भ्रमण का अधिकार
केस: सतवंत सिंह बनाम असिस्टेंट पासपोर्ट ऑफिसर, नई दिल्ली – व्यक्ति को अपनी इच्छा अनुसार कभी भी और कहीं भी जाने का अधिकार है।
5. निद्रा का अधिकार
केस: रामलीला मैदान बनाम गृह सचिव, भारत संघ – शांति और सुरक्षा के साथ सोना अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित अधिकार है।
6. शिक्षा का अधिकार
केस: मोहिनी जैन बनाम कर्नाटक राज्य
केस: उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
7. आहार पाने का अधिकार
केस: पीयूसीएन बनाम भारत संघ – न्यायालय ने कहा कि जो लोग खाद्य सामग्री खरीद नहीं सकते और भूख से पीड़ित हैं, उन्हें राज्य से मुफ्त खाद्य सामग्री पाने का अधिकार है।
8. प्रदूषण मुक्त जल और वायु का अधिकार
केस: सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य – न्यायालय ने कहा कि कोई भी नागरिक अनुच्छेद 32 के तहत इसके लिए लोकहित याचिका (PIL) दायर कर सकता है।
9. निःशुल्क विधिक सहायता का अधिकार
केस: एम. एच. होसकट बनाम महाराष्ट्र राज्य
10. जमानत लेने का अधिकार
केस: बाबू सिंह बनाम पंजाब राज्य – जमानत तभी रोकी जानी चाहिए जब व्यक्ति समाज के लिए खतरा हो।
11. शीघ्र विचारण का अधिकार
केस: हुस्नआरा खातून बनाम बिहार राज्य
12. बिजली पाने का अधिकार
केस: एम. के. आचार्य बनाम सीएमडी, पश्चिम बंगाल डिस्ट्रीब्यूशन
13. आश्रय या शरण पाने का अधिकार
केस: चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य – यह राज्य का कर्तव्य है कि जरूरतमंद को आश्रय प्रदान करे।
14. पुलिस मुठभेड़ में मृत्यु के लिए प्रतिकर
केस: पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम भारत संघ
15. सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान का निषेध
केस: मुरली देवरा बनाम भारत संघ
16. स्कूल बसों में सुरक्षित यात्रा करने का अधिकार
केस: स्वपन कुमार साहा बनाम साउथ पॉइंट मॉन्टेसरी हाई स्कूल – जरूरत से ज्यादा यात्री लादना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
17. अवैध निरोध के विरुद्ध अधिकार
केस: जोगिंदर सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
18. चिकित्सा सहायता पाने का अधिकार
केस: परमानंद कटारा बनाम भारत संघ
19. पुलिस अभिरक्षा में मृत्यु से संरक्षण
केस: नीलावती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य
20. वैक्सीनेशन को बाध्य करना और निजता का अधिकार
केस: जैकब पुलियल बनाम भारत संघ (2022)
21. यौन कर्मियों को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार
केस: बुद्धदेव करमास्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2022)
22. मरने का अधिकार
केस: महाराष्ट्र राज्य बनाम श्रीपति दूबल (1987) – धारा 309 को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना।
केस: पी. रतिनाम बनाम भारत संघ – दो जजों की पीठ ने कहा कि जीने के अधिकार में मरने का अधिकार भी शामिल है।
केस: ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य – 5 जजों की पीठ ने पूर्व निर्णय को पलटते हुए कहा कि जीने के अधिकार में मरने का अधिकार शामिल नहीं है।
23. पर्यावरण प्रदूषण के विरुद्ध अधिकार
केस: रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम उत्तर प्रदेश (1985) – पत्थर की खदानों पर रोक।
केस: एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ (1986, 1988, 1991, 1996) – गैस रिसाव, गंगा प्रदूषण, वाहन प्रदूषण और खतरनाक उद्योगों को हटाने से संबंधित निर्णय।
केस: काउंसिल फॉर एन्वाइरो-लीगल एक्शन बनाम भारत संघ (1996) – समुद्र तट के प्रदूषणकारी कारखानों को हटाना।
केस: इन री ध्वनि प्रदूषण (2005) – प्रत्येक व्यक्ति को ध्वनि प्रदूषण रहित वातावरण का अधिकार।
24. महिलाओं से संबंधित अधिकार
केस: दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग विमेंस फोरम बनाम भारत संघ – पीड़िता को प्रतिकर और पुनर्वास के लिए दिशा-निर्देश।
केस: बोधिसत्व गौतम बनाम शुभ्रा चक्रवर्ती – बलात्कार पीड़िता को प्रतिकर देने की शक्ति।
केस: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकने के लिए दिशा-निर्देश।
केस: मेधा कोटवाल लेले बनाम भारत संघ – विशाखा दिशा-निर्देशों के पालन की कमी, जिसके बाद 2013 में अधिनियम बना।
केस: चेयरमैन रेलवे बोर्ड बनाम चंद्रिमा दास – विदेशी महिला को भी अनुच्छेद 21 का संरक्षण।
केस: सुचेता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन – महिला को बच्चा जन्म देने या न देने का विकल्प।
25. अन्य अधिकार
- त्वरित सुनवाई का अधिकार
- स्वास्थ्य का अधिकार
- हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
- बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध अधिकार
- सरकारी अस्पताल में उचित समय पर इलाज का अधिकार
- राज्य के बाहर न जाने का अधिकार
- निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
- कैदी के लिए जीवन की आवश्यकताओं का अधिकार
- महिलाओं के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार का अधिकार
- सार्वजनिक फांसी के विरुद्ध अधिकार
- सामाजिक सुरक्षा और परिवार के संरक्षण का अधिकार
- जीवन बीमा पॉलिसी के विनियोग का अधिकार
- बिजली का अधिकार
- देर से फांसी के विरुद्ध अधिकार
- जीवन की रक्षा का अधिकार
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